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Thursday, February 16, 2012

0332

पता नही तेरी मौन स्वीकृति को क्यूँ मैं हाँ समझ बैठा |
पगली तू तो ख्वाब ही थी कोई मैं ही सच समझ बैठा ll
बस दो-चार कदम ही तो चली थी तू हाथों को पकड़ के |
इतने को ही बस मैं ज़िंदगी भर का साथ समझ बैठा ll

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